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नज़्म
मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है कि नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
एक दिन हज़रत-ए-फ़ारूक़ ने मिम्बर पे कहा
क्या तुम्हें हुक्म जो कुछ दूँ तो करोगे मंज़ूर
शिबली नोमानी
नज़्म
मैं ने जब पूछा कि रौशन चाँद से बढ़ कर है क्या
नाज़ से बोला वो बुत चेहरा मिरा चेहरा मिरा